A.U. B.A. Ist Year Hindi I - Ch.4 (सुमित्रानन्दन पंत) - 3

 प्र.3. पंत कोमल भावों के कवि हैं इस कथन की पुष्टि कीजिये।       (2017)

उ. पन्त जी सुन्दरता के उपासक हैं। उनका सम्पूर्ण काव्य उनकी सौन्दर्यमयी दृष्टि से आप्लावित है। यद्यपि उनकी दृष्टि मानव, नारी, गान्धीवाद, मार्क्सवाद तथा अरविन्दवाद तक गयी है तथापि इन सबके मूल में प्रकृति ही विद्यमान रही है। वे उसे नहीं भूल सके हैं। इसका बहुत कुछ श्रेय उनकी जन्मभूमि कौसानी को है।

पंत : कोमल कल्पना के कवि

पन्त जी कोमल कल्पना के कवि हैं जैसा कि निम्नलिखित से स्पष्ट है -

1. सौन्दर्य प्रेमी पन्त - पंत की सौन्दर्य एवं प्रकृति सम्बंधी कल्पनाएँ सदैव कोमल रही हैं। प्रकृति के स्वच्छन्द वातावरण में वे विचरे हैं। शुभ चाँदनी में उन्होंने क्रीड़ा की है। उसकी हरीतिमा पर वे अनुरक्त हुए हैं। झरते हुए झरनों से उन्होंने वसुन्धरा की पुकार सुनी है। हिम-मण्डित शिखरों के सौन्दर्य का मान किया है। सायं वेला के अरुणिम क्षितिज के आकर्षण से मस्त होकर वे घण्टों शून्य की ओर ताकते रहे हैं तथा उस अव्यक्त सत्ता को जुगनुओं के प्रकाश में देखा है। इसीलिए बाल्यावस्था से ही प्रकृति प्राणों में समा गयी है। प्रकृति रग-रग में दौड़ गयी है। फलतः खून के जर्रे-जर्रे से उनका प्रकृति प्रेम टपकने लगा और प्रकृति में तल्लीन होने के लिए लालायित हो उठे। 

2. प्रकृति प्रेमी पन्त - पन्त जी प्रकृति के सुकुमार कवि हैं, इसलिए उनके काव्य में प्रकृति के विभिन्न रूपों का चित्राण हुआ है किन्तु ‘परिवर्तन’ नामक कविता को छोड़कर अन्य किसी भी स्थान पर प्रकृति के उग्र रुप का चित्राण नहीं हुआ है। उनके काव्य में सर्वत्रा प्रकृति के कोमल रूप का ही चित्राण हुआ है। उदाहरण के लिए ‘वीणा’,‘ग्रन्थि से’ को लिया जा सकता है। ‘ग्रन्थि से’ में कवि अपनी उत्सुकता को प्राकृतिक उपादानों में भी देखता है। उसे जल की धाराओं, अन्धकार और वायु की ध्वनि में भी उत्सुकता दिखाई पड़ती है।

3. गंुजन और युगान्त में कोमल कल्पना - ‘गुंजन’ एवं ‘युगान्त’ में उनकी प्रकृति की गम्भीरता बढ़ जाती है। उसमें प्रौढ़ता एवं मादकता आती जाती है। यहाँ पर उनका प्रकृति प्रेम विभिन्न रूपों में व्यक्त हुआ है। परन्तु इन विभिन्न रूपों में भी अधिकांशतः उनके कोमल एवं मधुर चित्राण ही हैं। यद्यपि कवि ने ‘परिवर्तन’ नामक कविता में प्रकृति के उग्र रूप का भी चित्राण किया है। परन्तु अधिकांश रूप मधुर ही है। ‘नौका विहार’ में कवि ने गंगा का तापसबाला के रूप में चित्राण करते हुए उसका मानवीकरण किया है -

सैकत शैया पर दुग्ध धवल, तन्वगी ग्रीष्म विरल,

लेटी है श्रान्त, क्लांत निश्चल

तापस-बाला गगां निर्मल शशि सुख से दीपित मृदु करतल

लहरें उर पर कोमल कुन्तल।

4. भावना एवं कल्पना का अद्भुत समन्वय - कवि ने ‘पल्लव’ में भावना और कल्पना का मोहक समन्वय स्थापित किया है। ‘बादल’ नामक कविता में विभिन्न भावों एवं कल्पनाओं का सामंजस्य उपस्थित किया है -

सुरपति के हम ही हैं अनुचर, जगत्प्राण के भी सहचर।

मेघदूत की सहज कल्पना, चातक के चिर जीवन धनड्ड

5. दुःख में कोमल कल्पना - कवि पन्त ने यह स्पष्ट किया है कि कभी विषम परिस्थिति में मानव को प्रकृति से भी विराग हो जाता है। उस स्थिति में मानव प्रकृति की ओर आकृष्ट नहीं होता। जैसे कोयल की कूक उसे नहीं भाती। वसन्त का आगमन उसे नहीं रुचता। इन सबसे उसकी विरहाग्नि तीव्र होती है -

काली कोकिल सुलगा उर में स्वरमयी वेदना का अंगार।

आया वसन्त, घोषित दिगन्त करती, भर पावस की पुकारड्ड

6. नारी सौन्दर्य की कोमल कल्पना - कवि ‘ग्रन्थि से’ में नारी सौन्दर्य पर रीझ उठा है। कपोलों की अरुणिमा ने कवि को आकृष्ट कर लिया है। वह उसकी ओर टकटकी लगाकर उसकी मादक सुरा-का पान करना चाहता है -

लाज की मादक सुरा सी लालिमा, फैल गालों में नवीन गुलाब से।

छलकती थी बाढ़ सी, सौन्दर्य की अधखुले सस्मित गढ़ों से सीप से।

इन गढ़ों में रूप के आवर्त से घूम फिर कर, नाव से किसके ‘नयन’।

हैं नहीं डूबे भटक कर अटक कर, भार से दबकर तरुण सौन्दर्य के?

7. मानव सौन्दर्य में कोमल कल्पना - ‘युगान्त’ में कवि प्रकृति प्रेम से आगे बढ़कर मानव की ओर आकृष्ट होता है और वह कह उठता है -

सुन्दर है विहग सुमन सुन्दर, मानव तुम सबसे सुन्दरतम।

8. कोमल भाषा - पंत जी ने खड़ी बोली की कर्कशता को दूर कर उसे काव्य के अनुरूप सरस, स्पष्ट एवं आकर्षक बनाया है। उन्होंने भाषा में मिठास लाने के लिए ब्रजभाषा के ‘कारे’, ‘कजरारे’ आदि शब्दों का प्रयोग किया है। उनकी शब्द योजना मधुर तथा आकर्षक है। देखिए -

सर सर मर मर रेशम के से स्वर भर।

उनके शब्दों में दृश्य उत्पन्न करने की अपूर्व क्षमता है ध्वनिपरक शब्द का प्रयोग उन्होंने किया है। संध्या का एक वर्णन देखिए -

बाँसों का झुरमुट संध्या का झुट पुट

है चहक रही चिड़िया टी-बी-टी टुट्-टुट्

9. अलंकार एवं छन्द - कवि ने कोमल कल्पनाओं की सर्जना के लिए नवीन अलंकारों-मानवीकरण, विशेषण-विपर्यय का प्रयोग किया है। उनके छन्द तो कोमलता, सरसता एवं माधुर्यता की त्रिवेणी बहाते हैं -

दिन की आभा दुलहिन बन आई निशि निभृत शयन पर

यह छवि की छुई मुई सी मृदु मधुर लाज से भर-भर।

निष्कर्ष - हम देखते हैं कि पंत जी ने अधिकांश रूप में कोमल कल्पना का ही प्रश्रय दिया है। फिर भी यदि कहीं उग्र कल्पनाओं का चित्राण हुआ है तो केवल इसलिए कि उनकी सापेक्षता में कोमल कल्पनाओं का सही एवं उचित मूल्यांकन किया जा सके। अतः निश्चय रूप से कहा जा सकता है कि वे कोमल कल्पना के कवि हैं - अनुभूति एवं वासना के नहीं।