A.U. B.A. Ist Year Hindi I - Ch.4 (सुमित्रानन्दन पंत) - 1

 प्र.1. पंत के प्रकृति-चित्राण पर सोदाहरण प्रकाश डालिये।

अन्य सम्बन्धित प्रश्न -

प्र. ‘पंत के काव्य ने प्रकृति के विविध रूपों का चित्राण किया है।’ इस कथन की समीक्षा  कीजिये।     (2011)

प्र. पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं इस कथन की समीक्षा कीजिये।                                             (2009)

प्र. पंत के प्रकृति-चित्राण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।                                                (2014, 17, 19)

प्र. पंत के प्रकृति वर्णन की सोदाहरण विवेचना कीजिये।                                                   (2008)

उ. संस्कृति कवियों से लेकर रीतिकाल तक प्रकृति-चित्राण की जो धारा अजस्त्रा रूप से प्रवाहित हुई थी वह छायावाद में पहुँचकर विलुप्त हो गयी। छायावादी काव्य में प्रकृति के नियमित चित्राण के स्थान पर उसे विविध रूपों से चित्रित किया जाने लगा। पन्त काव्य में इस परिवर्तन के पश्चात् हुए प्रकृति के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं। वे वास्तव में प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। उनका स्वयं कथन है कि प्रकृति के सुन्दर रूप ही ने मुझे अधिक लुभाया है पर उसका उग्र रूप भी मैंने ‘परिवर्तन’ में चित्रित किया है, अतः केवल एक कविता के आधार पर पन्त को प्रकृति के उग्र रूप का चितेरा नहीं कहा जा सकता। 

पन्त के काव्य में प्रकृति के विभिन्न रूप -

1. अव्यक्त की अभिव्यक्ति के रूप में - छायावादी कवियों की रचना में अव्यक्त सत्ता के प्रति जिज्ञासा और उत्सुकता की तीव्र भावना पायी जाती है। पन्त जी इसके अपवाद नहीं। पन्त जी प्रकृति में उस अव्यक्त सत्ता का आभास पाकर उसे जानने, उसका परिचय पाने, उसमें अपने को लय कर देने के लिए व्याकुल हैं। प्रकृति में उसी अव्यक्त सत्ता की अनुभूति और उसकी अभिव्यक्ति पन्त जी के काव्य में प्रतिबिम्ब, प्रतीक और संकेत के रूप में हुई है। देखिए -

सघन मेघों का भीमाकाश, गरजता है जब तमसाकार,

दीर्घ भरता समीर निःस्वास प्रखर झरती जब पावस धार

न जाने, तपक तड़ित में कौन, मुझे इिंगत करता तब मौन।

पन्त जी प्रकृति की व्यापक शक्ति में यथावसर सुख और दुःख दोनों का अनुभव करते हैं।

2. चित्रात्मक विधान के रूप में - छायावादी कवि प्रकृति को चेतन शक्ति के रूप में स्वीकार करता है। इसलिए छायावादी कवि प्रकृति-चित्राण उसी अवस्था में करता है जब वह प्रकृति के सौन्दर्य या उसकी भीषणता के साथ तन्मय और एकाकार हो जाता है। पन्त जी में इस प्रकार के चित्राण की पूर्ण क्षमता है। उदाहरण के लिए देखिए -

पहले सुनहले आम्र और नीले, पीले और ताम्र भास

वे अन्ध गन्ध हो ठौर-ठौर।

3. दार्शनिक तथ्य निरूपण के रूप में - पन्त जी ने प्रकृति के माध्यम से अपने दार्शनिक सिद्धान्तों का उद्घाटन किया है। उसमें जीवन की अनित्यता, अमरता, नश्वरता, आदि भावों का दर्शन हुआ है। ‘नौका विहार’ कविता में उनके दार्शनिक विचारों की अभिव्यक्ति निम्न रूप से हुई है। देखिए -

इस धारा-सा जग का क्रम शाश्वत इस जीवन का उद्गम

शाश्वत है गति शाश्वत संगम

शाश्वत नभ का नीला विकास, शाश्वत शशि कर का रजत हास

शाश्वत लघु लहरों का विकास

हे जगजीवन के कर्णधार? चिर जन्म मरण के आर-पार

शाश्वत जीवन नौका विहार

मैं भूल गया अस्तित्व ज्ञान, जीवन का यह शाश्वत प्रमाण

करती मुझको अमरत्व दान।

4. मानवीकरण के रूप में - कवि ने विभिन्न स्थलों पर प्रकृति को मानव का रूप देकर उसका मानवीकरण किया है। इस शैली के वर्णन में कवि का मूल उद्देश्य प्रकृति के विशिष्ट भावों की अवतारणा करना ही है। गंगा का एक चित्रा देखिए -

सैकत-शैया पर दुग्ध धवल, तन्वंगी गंगा ग्रीष्म विरल,

लेटी है श्रान्त क्लान्त निश्चल

तापस बाला गंगा निर्मल, शशिमुख से दीपित मृदु करतल

लहरें उर पर कोमल कुन्तल।

गोरे अंगों पर सिहर-सिहर लहराता ताल तरल सुन्दर,

चंचल अम्बर सा नीलाम्बर।

5. प्रकृति रौद्र रूप में - पन्त जी ने, रौद्र रूप में प्रकृति का चित्राण किया है। रौद्र रूप में चित्राण करने का आशय उसकी विकरालता का झण्डा फहराना ही नहीं वरन् उसकी वास्तविकता प्रकट करना है। पन्त जी ने रौद्र रूप में प्रकृति का बहुत ही कम चित्राण किया है। उनकी ‘परिवर्तन’ कविता में ही प्रकृति के उग्र रूप के दर्शन होते हैं। देखिए -

अहे वासुकि सहस्त्रा फन।

लक्ष अलक्षित चरण तुम्हारे चिद्द निरन्तर

छोड़ रहे हैं जग के विक्षित वक्षस्थल पर

शत-शत फेनोच्छवसित स्फीत फुत्कार भयøर

घुमा रहे हैं घनाकार जगती का अम्बर।

मृत्यु तुम्हारा गरल दन्त, कंचुक कल्पान्तर,

अखिल विश्व हो विवर चक्र कुण्डल दिङ्मंगल।

6. आलम्बन रूप में - आलम्बन रूप में प्रकृति का वर्णन करते समय कवि या तो उसे निर्जीव रूप में चित्रित करता है अथवा सजीव और संश्लिष्ट रूप में। पन्त जी ने प्रकृति को आलम्बन रूप में चित्रित करते समय दोनों प्रणालियों का अनुकरण किया है। देखिएµ

शान्त स्निग्ध ज्योत्स्ना उज्ज्वल। अपलक अनन्त, नीरव भूतल।

7. उद्दीपन के रूप में - इस रूप में प्रकृति का चित्राण केवल नायक और नायिकाओं के मनोविकारों को उत्तेजित करने के लिए ही नहीं किया गया है। वरन् वह तो कवियों के मनोविकारों को उत्तेजित करती हुई चित्रित हुई है। पन्त जी ने प्रकृति में चेतन सत्ता का आरोप किया है। अतः उद्दीपन के रूप में होते हुए भी उसका कवि के साथ तादात्म्य प्रकट होता है। जैसे -

अलि के पलकों में मिलन स्वप्न, अलि के अन्तर में प्रणय गान,

लेकर आया प्रेमी वसन्तµआकुल जड़ चेतन स्नेह प्राण।

काली-कोकिल! सुलगा उर में स्वरमयी वेदना का अंगार

आया वसन्त घोषित दिगन्त करती झर पावस की पुकार।

8. अप्रस्तुत रूपविधान के रूप में - छायावादी कवियों ने अप्रस्तुत रूपविधान को अत्यधिक महत्त्व दिया है। पन्तजी का अप्रस्तुत विधान भावव्यंजक है। उसमें कल्पना की जटिलता नहीं है। जहाँ पर वस्तुओं एवं व्यापारों का चित्राण हुआ है उसमें उपमा आदि अलंकारों का खुलकर प्रयोग हुआ है। भावव्यंजक शैली में अप्रस्तुतों की योजना अधिक निखर आयी है। देखिए -

वह लघु परिमल के घन सी, जो नील अनिल में अविकल 

सुख के उमड़े सागर की जिसमें निमग्न उर-तट स्थल

वह स्वप्निल शयन मुकुल सी है मुदे दिवस के द्युति दल

उर में सोया जग का अलि नीरव जीवन गु×जन कल।

9. संवेदनात्मक रूप में - पन्त जी के काव्य में प्रकृति की संवेदनशीलता की छाया स्पष्ट रूप में प्रतिबिम्बित होती है। इसमें कवि ने प्रकृति का विवरणात्मक वर्णन ही नहीं प्रस्तुत किया है वरन् प्रकृति सम्बन्धी अपने विभिन्न उद्गारों का चित्राण किया है। देखिए -

इन्द्रधनुष की सुन टंकार उचक चपला के चंचल बाल

दौड़ते थे गिरि के उस पार देख उड़ते विशिखों की धार 

मारुत जब उनको द्रुत चुमकार रोक देता था वेधासार।

निष्कर्ष - उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि पन्त जी को काव्य-रचना की मूल प्रेरणा प्रकृति से ही मिली है। प्रकृति उनकी चिरसंगिनी है। इसलिए उन्हें प्रकृति का उपासक कहा जाता है। पन्तजी ने प्रायः प्रकृति के मधुर रूपों का ही चित्राण किया है किन्तु ‘परिवर्तन’ नामक कविता में प्रकृति के उग्र  रूप के भी दर्शन होते हैं किन्तु केवल एक कविता के आधार पर उन्हें प्रकृति के उग्र रूप का चित्राण करने वाले कवि के रूप में नहीं विभूषित किया जा सकता है। वे वस्तुतः प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। पन्त के काव्य में प्रायः प्रकृति के ये विभिन्न रूप देखने को मिल जाते हैं जिनका सूत्रापात छायावादी साहित्य में हुआ। प्रकृति के विभिन्न रूप पन्तजी की उर्वर कल्पना, सूक्ष्म संवेदना, उत्कृष्ट प्रतिभा और अगाध प्राकृतिक प्रेम के परिचायक हैं। अन्ततः पन्तजी का प्रकृति वर्णन निःसन्देह अनूठा है। इसीलिए कहा जा सकता है कि उनकी कविताओं में प्रकृति के प्रति विशेष उत्सुकता दिखाई देती है।