A.U. B.A. Hindi I - Ch.3. (सूर्य कान्त त्रिपाठी - ‘निराला’) - 3

 प्र.3. बादल राग की विशेषता बताइये।       (2007)

अन्य सम्बन्धित प्रश्न -

प्र. बादल राग पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।    (2017, 11)

प्र. निराला की बादल राग कविता के पठित अंश के कथ्य पर प्रकाश डालिये। (2009) 

उ. बादल का जलवर्षण, बन्ध-प्रकृति, निखिल जीव-जन्तु तथा मानवीय जीवन विकास एवं पोषण के लिए अमृत-द्रव होता है। उसके रस-सिंचन के पश्चात् ही पृथ्वी बीज धारण के उपयुक्त एवं उर्वरा बनाती है कि बादल की आकर्षक आकृति, वर्णमयी रंगमयता, ध्वनि, गीत और वृष्टि सभी सबके लिए स्फूर्तिप्रद और परमप्रिय है, किन्तु सामान्य जन-जीवन तथा गाँवों में इनका जो स्वागत-सत्कार होता है वह बहुत ही स्वाभाविक सरल-सहज और प्रीति स्निग्ध तथा आत्मीय होता है। कृषकों का तो यह जीवनाधार है वे इस अकारण परोपकारी आगन्तुक का परम प्रेम से स्वागत करते हैं। वे जानते हैं कि कृषि का प्रवर्तक यही है। निराला ने इस ओर संकेत किया है -

जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर 

तुझे बुलाता कृषक अधीर

ऐ विप्लव के वीर।।

बादल का सम्पूर्ण-संचय, त्याग के लिए होता ह,ै प्रजाओं के पालन के लिए होता है और इस अर्थ में वह प्रजापति भी है। उसकी ममता का कोष सबके लिए खुला रहता है उसके उपहार से सभी पुष्ट और प्रसन्न होते हैं। किन्तु इस प्रजापतित्व की सार्थकता के लिए उसे कर्मानुसार दण्ड का भी विधान करना पड़ता है। प्रजाओं के उद्भव स्थिति और संहार तीनों का वह अधिकारी है वस्तुतः अमृतजीवन जल-वर्षा के साथ वह ओलों की ही नहीं वज्र की भी वर्षा करता है। उसका कठोर रूप भी अपने उद्देश्य में कल्याणकारी ही होता है। ओले तो जैसे उसकी व्यंग बौछार हैं और वज्रशक्ति के गर्व में ऊपर उठे हुए पर्वतों, अभिमानाकुरों को भंजन करने का अमोघ अस्त्रा।  प्रकृति पुरूष होने के नाते वह स्वयं प्रकृति के भीषण, उग्र तथा कठोर एवं मृदु, कोमल और शान्त रूपों का समीकरण है। निराला ने उसे कुसुम कोमल, कठोर कवि कहकर सम्बोधित किया है। बादल अपनी इस द्विविध प्रक्रिया से प्रकृति की द्वन्द्वमयी स्थिति को स्पष्ट करता है उसके वास्तविक स्वरूप की अवगति के लिए यह उक्ति कितनी सार्थक है -

जानामि त्वां प्रकृति पुरूषं कामरूपं मघोनः।

महाप्राण निराला के विराट व्यक्तित्व का पूर्ण तादात्म्य इसी प्रकृति-पुरूष बादल से ही सम्भव है बादल पर लिखी उनकी दर्जनों कविताएँ उसका ज्वलंत और जीवन साक्ष्य उपस्थित करती हंै। मनीषियों की मान्यता है कि कवि की प्रतिभा का ही अन्तःस्वरूप है उसमें बाह्य प्रकृति का द्वन्द्व पाया जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं; निराला के व्यक्तित्व और उनकी प्रतिभा में एक साम्य पाया जाता है जो विश्व के बहुत कम कवियों में मिलता है। इस व्यक्तित्व का बहुविध प्रवृत्ति -रूप उनकी ‘बादल राग’ कविताओं में पूर्णतया स्पष्ट है। निराला के भैरव घोष भी बादल के व्यक्तित्व का एक विप्लवी चित्रा देखिए -

ऐ निर्बन्ध 

ऐ स्वच्छन्द।

मन्द-चंचल-समीर-रथ पर उच्छृंखल।

ऐ उद्दाम

अपार कामनाओं के प्राण।

बाधा रहित विराट।

ऐ विप्लव के प्लावंज

सघन घोर गगन के

ऐ सम्राट।

सावन की तरह मेघाच्छन्न भावों के मनोरम स्वामी, से रूढ़ियों पर आक्रमण करने वाले पागलपन, विश्व के वैभव (शोषण-संचित सम्पत्ति) को लूटकर लड़ने वाले अपवाद (लूट का साहस सबको नहीं होता)। ऐ कली को पीड़न के द्वारा विकास देने वाले, सौन्दर्य को विकसित एवं व्यापक बनाने वाले पत्रा-पुष्प, पादप, वन-उपवन (सम्पूर्ण प्राचीन प्रकृति) को छिन्न-भिन्न कर नया रूप देने वाले, वज्र (दृढ़ता) की गर्जन से स्वार्थवृत्तों पर आतंक जमाने वाले प्रचण्ड, (नयी व्यवस्था को स्वीकार न करने वालों के प्रति ऐ सहानुभूतिहीन) भय (भ्रम) के आँगन (केन्द्र) में युगान्तर का नवजीवन देने वाले बादल गरजो, जीर्ण-शीर्ण को ध्वस्त करने के लिए निर्भय हुंकार करो। इस प्रकार इस कविता में कवि ने संकीर्ण, अवरूद्ध तथा जीवन में परिवर्तन परिष्कृति तथा गति लाने के लिए ही विप्लवकारी बादल का रूप सामने रखा है, जो कवि के व्यक्तित्व की बाह्य प्रकृति-मात्रा है। सामूहिक मुक्ति ही इस कविता की, इस विप्लवी मेघ गीत की मूल प्रेरणा है। निराला को यह भली-भाँति मालूम है कि ‘निर्दय विप्लव की प्लावित माया’ के बिना संसार में सामूहिक उन्मेष न कभी हुआ, न होगा। इसलिए कवि विप्लवी बादलों का आह्नान करता है -

तिरती है समीर सागर पर अस्थिर दुःख पर सुख की छाया।

जग के दग्ध हृदय पर निर्दय विप्लव की प्लावित माया।

यह तेरी रणतरी

भरी आकांक्षाओं से

घन भेरी गर्जन से सजग सुप्त अंकुर 

उर में पृथ्वी के आशाओं से

नवजीवन का, ऊँचा कर सिर

ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल 

फिर फिर

जब विप्लवी बादल गरजता है, मूसलाधार बरसता है, तब सारा संसार काँप उठता है। वज्रपात से बड़े-बड़े अभिमानी अटल पर्वतों के शरीर चूर-चूर हो जाते हैं, केवल छोटे पौधे अर्थात साधारण जन प्रसन्न होते हैं क्योंकि ‘विप्लव रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।’ धनीमानी बादल (क्रान्ति) की गर्जना सुनकर काँप उठते हैं क्योंकि क्रान्ति से भयभीत होते हैं लेकिन जीर्ण बाहु, शीर्ण शरीर कृषक बड़ी उत्सुकता से उनका स्वागत करते हैं क्योंकि यही बादल उनका जीवनाधार है। यह विप्लवी बादल निराला के चिरविप्लवी व्यक्तित्व का पूर्ण प्रतीक हैं, इसमें संदेह नहीं। निराला अपने व्यक्तित्व के विविध परीक्षणों के अनुरूप बादल के विविध स्वरूपों का चित्राण करते हैं -

आज श्याम-घनश्याम, श्याम कवि

मुक्त कण्ठ है तुम्हें देख कवि 

अहो कुसुम-कोमल कठोर पवि।

शत सहस्त्रा-नक्षत्रा-चन्द्र-रवि-संस्तुत

नयन मनोरंजन। बने नयन अंजन।

‘बादल राग’ कविता निराला के सर्वस्वदानी करूणामय रूप को सबके सामने स्पष्ट कर देती है। इस कविता में कवि ने अपनी अनन्तधार अन्तर्बादल प्रतिभा से सर्व मंगलमय रस वर्षण द्वारा समूूचे विश्व को सिक्त करने की कामना की है। विश्व के साथ समभाव तभी स्थापित हो सकेगा जब यह स्वीकार कर लिया जायेगा कि सर्वकल्याण ही दिव्य आत्मा का पोषण है और सर्वप्रेम ही उसकी प्रेम विजय है -

झूम-झूम मृदु, गरज-गरज घन घोर,

राग अमर। अम्बर में भर निज रोर।

झर झर झर निर्झर-गिरि सर में,

घर, मरू, तरू-मर्मर, सागर में,

सरित, तड़ित-गति-चकित पवन में

मन में, विलय-गहन-कानन में,

आनन-आनन में, रव-घोर-कठोर,

राग अमर अम्बर में भर निज रोर।

ताप-शाप, रोग-शोक, दुःख-दारिद्रय तथा विषमता की पीड़ा से लुंठित-कुंठित विश्व पर, उसके संवेदनात्मक स्पन्दनों पर अमृत की रस धार बहाने की यह अदम्य आकांक्षा निराला के व्यक्तित्व का उज्वलतम रूप है। वह रूद्र शक्ति से सम्पन्न होते हुए भी शिव है, कठोर कवि होकर भी कुसुम के समान कोमल है, विप्लव का उद्घोषण होकर भी नवजीवन का पोषक है। इस प्रकार निराला के व्यक्तित्व और प्रतिभा की विराट बहुमुखता और गहन गम्भीरता का मूल प्रतीक उनकी बादल राग कविताएँ हैं, जिनको पूर्णतया हृदयंगम कर लेने के पश्चात् कवि का विराट बादल व्यक्तित्व सम्पूर्ण रूप से स्पष्ट हो जाता है।

‘बादल-राग’ कविता के इस अन्तिम खण्ड में कवि ने बादल के क्रांतिकारी रूप को चित्रित किया है जिससे धनी आतंक के कारण काँप रहे हैं और त्रास्त होकर अपना नयन-मुख ढँाप रहे हैं लेकिन जीर्ण-शीर्ण, अधीर कृषक उसका स्वागत कर रहे हैं क्योंकि वे जानते हैं कि इसी से नव-निर्माण संभव है। दूधनाथ सिंह के अनुसार दरअसल निराला की वर्षा कविताएँ और उनमें भी बादल राग उनके गहरे संघटित काव्य व्यक्तित्व की उपज है। बादल-राग अपने सम्पूर्ण भाषिक और विषयगत वैविध्य में संघटित सिम्फनी है - एक पूर्ण संरचना। बादल-राग के छः खण्डों में बादल के विविध रूप कवि की उदात्त, ऊर्जस्वित, पौरूषवान संवेदना के प्रतिरूप हैं। इस प्रकार कवि की आत्म-विभोरता, क्रान्ति चेतना, प्रेम भावना, बाल सुलभ, पावनता तथा दार्शनिक भावना के छः रूप इनमें चित्रित हैं। कवि की क्रान्ति चेतना हिंसा और विनाश की नहीं निर्माण और सृजन की है। किसान, मजदूर एवं समाज के दलित-शोषित लोग उनके कारण हैं। उनका विकास, विस्तार और प्रगति उन्हें स्वीकार्य है। अतः यह विप्लव का आवाहन करते हैं।